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Indian soil

भारत में पाई जाने वाली मृदाओं और उनमें उगाई जाने वाली फसलें

भारत में पाई जाने वाली मृदाओं और उनमें उगाई जाने वाली फसलें

भारत में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है, माटी की काया है एक दिन माटी में ही मिल जाएगी। यह कहावत मिट्टी की महत्व को दर्शाती है। कैल्शियम, सोडियम, एल्युमिनियम, मैग्नीशियम, आयरन, क्ले एवं मिनरल ऑक्साइड के अवयवों से मिलकर बनी मिट्टी वातावरण को संशोधित भी करती है। बतादें, कि घर निर्माण से लेकर फसल उत्पादन तक हमारी जिंदगी के तकरीबन हर कार्य में मृदा कहीं न कहीं आवश्यक होती है। किसी भी क्षेत्र में कौन-सी फसल बेहतर ढ़ंग से हो सकती है, यह बात काफी हद तक उस क्षेत्र की मृदा पर आश्रित रहती है। इकोसिस्टम में मिट्टी पौधे की उन्नति के लिए एक जरिए के तौर पर कार्य करती है। यहां हम आपको बताएंगे कि भारत के कौन-से इलाकों में कौन-सी मिट्टी होती है और उसमें कौन-सी फसलें उत्पादित की जा सकती हैं।

दोमट या जलोढ़ मिट्टी कहाँ पाई जाती है और इसमें कौन-कौन सी फसल की जा सकती हैं

जलोढ़ मिट्टी भारत में सबसे बड़े पैमाने पर पाई जाने वाली और सबसे महत्वपूर्ण मिट्टी समूह है। भारत के कुल भूमि रकबे का लगभग 15 लाख वर्ग किमी अथवा 35 प्रतिशत भाग में यही मिट्टी है। भारत की तकरीबन आधी कृषि जलोढ़ मिट्टी पर होती है। जलोढ़ मृदा वह मृदा होती है, जिसे नदियां बहा कर लाती हैं। इस मृदा में नाइट्रोजन एवं पोटाश की मात्रा कम होती है। परंतु, फॉस्फोरस एवं ह्यूमस की अधिकता होती है। जलोढ़ मृदा उत्तर भारत के पश्चिम में पंजाब से लेकर पूरे उत्तरी विशाल मैदान से चलते हुए गंगा नदी के डेल्टा इलाकों तक फैली है। इस मृदा की यह विशेषता है, कि इसमें उवर्रक क्षमता काफी हद तक अच्छी होती है। पुरानी जलोढ़ मृदा को बांगर एवं नई को खादर कहा जाता है। जलोढ़ मृदा में काला चना, हरा चना, सोयाबीन, मूंगफली, सरसों, तिल, जूट, मक्का, तंबाकू, कपास, चावल, गेहूं, बाजरा, ज्वार, मटर,
लोबिया, काबुली चना, तिलहन फसलें, सब्जियों और फलों की खेती इस मृदा में होती है।

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काली मिट्टी कहाँ पाई जाती है और इसमें कौन-कौन से फसल की जा सकती हैं

काली मिट्टी बेसाल्ट चट्टानों (ज्वालामुखीय चट्टानें) के टूटने और इसके लावा के बहने से निर्मित होती है। इस मिट्टी को रेगुर मिट्टी और कपास की मिट्टी भी कहा जाता है। इसमें आयरन, मैग्नेशियम, लाइम और पोटाश होते हैं। परंतु, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और कार्बनिक पदार्थ इसमें कम पाए जाते हैं। इस मृदा का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट और जीवांश (ह्यूमस) की वजह से होता है। यह मृदा डेक्कन लावा के रास्ते में पड़ने वाले इलाकों जैसे कि महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ इलाकों में होती है। नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा और ताप्ती नदियों के किनारों पर यह मिट्टी पाई जाती है। जानकारी के लिए बतादें कि काली मिट्टी में होने वाली प्रमुख फसल कपास है। हालाँकि, इसके अतिरिक्त गन्ना, गेहूं, ज्वार, सूरजमुखी, अनाज की फसलें, चावल, खट्टे फल, सब्ज़ियां, तंबाकू, मूंगफली, अलसी, बाजरा व तिलहनी फसलें होती हैं।

लाल और पीली मिट्टी कहाँ पाई जाती है और इसमें कौन-कौन सी फसल की जा सकती हैं

यह मिट्टी दक्षिणी पठार की पुरानी मेटामार्फिक चट्टानों के टूटने से बनती है। भारत के अंदर यह मृदा ओड़िशा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के पूर्वी इलाकों, छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र, पश्चिम बंगाल के उत्तरी पश्चिम जिलों, मेघालय की गारो खासी और जयंतिया के पहाड़ी क्षेत्रों, नागालैंड, राजस्थान में अरावली के पूर्वी क्षेत्र, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ भागों में पाई जाती है। यह मृदा कुछ रेतीली होती है और इसमें अम्ल एवं पोटाश की मात्रा ज्यादा होती है जबकि इसके अंदर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और ह्यूमस की कमी होती है। लाल मिट्टी का लाल रंग आयरन ऑक्साइड की मौजूदगी की वजह से होता है। परंतु, जलयोजित तौर पर यह पीली दिखाई पड़ती है। चावल, गेहूं, गन्ना, मक्का, मूंगफली, रागी, आलू, तिलहनी व दलहनी फसलें, बाजरा, आम, संतरा जैसे खट्टे फल व कुछ सब्ज़ियों की खेती अच्छी सिंचाई व्यवस्था करके उगाई जा सकती हैं।

लैटेराइट मिट्टी कहाँ पाई जाती है और इसमें कौन-कौन सी फसल की जा सकती हैं

लैटेराइट मृदा पहाड़ियों एवं ऊंची चट्टानों की चोटी से निर्मित होती है। मानसूनी जलवायु के शुष्क एवं नम होने का जो बदलाव होता है, उससे इस मृदा को निर्मित होने में सहायता मिलती है। मृदा में अम्ल एवं आयरन अधिक होता है। वहीं फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, कैल्शियम और ह्यूमस की कमी होती है। इस मृदा को गहरी लाल लैटेराइट, सफेद लैटेराइट एवं भूमिगत जलवायी लैटेराइट में विभाजित किया जाता है। लैटेराइट मृदा केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, असम, तमिलनाडु और कर्नाटक में पाई जाती है। लैटेराइट मृदा अत्यधिक उपजाऊ नहीं होती है। परंतु दलहन, चाय, कॉफी, रबड़, नारियल, काजू, कपास, चावल और गेहूं की खेती इस मिट्टी में होती है। इस मिट्टी में आयरन की भरपूर मात्रा होती है। इस वजह से ईंट तैयार करने में भी इस मृदा का इस्तेमाल किया जाता है।
विविधताओं वाले भारत देश में मिट्टी भी अलग अलग पाई जाती है, जानें इनमे से सबसे ज्यादा उपजाऊ कौन सी मिट्टी है ?

विविधताओं वाले भारत देश में मिट्टी भी अलग अलग पाई जाती है, जानें इनमे से सबसे ज्यादा उपजाऊ कौन सी मिट्टी है ?

जैसा कि हम जानते हैं, कि हिंदुस्तान विविधताओं का देश है। यहां तक कि भारत में मिट्टी भी विभिन्न प्रकार की पाई जाती है। मिट्टी (Soil) के कारण यहां फसलों में भी विविधता पाई जाती है। भारत का किसान विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन करता है। मुख्य बात ये है, कि भारत में जिस प्रकार भिन्न भिन्न फसल होती है, वैसे ही देश में अलग-अलग मिट्टी भी है, जो कि फसलों को सही पोषण देकर उन्हें उगने में सहायता करती है। आपने बचपन में अपनी किताबों में भारत में पाई जाने वाली मिट्टी के विषय में अवश्य पढ़ा होगा। क्या आपको मालूम है, कि हिंदुस्तान में कितने तरह की मिट्टी पाई जाती है ? यदि नहीं, तो इस लेख के जरिए आपको इनके सभी प्रकारों के बारे में जानकारी देंगे। भारत में पाई जाने वाली प्रमुख प्रकार की मृदाएं जैसे कि - जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil), लाल मिट्टी (Red And Yellow Soil), काली मिट्टी (Black Or Regur Soil), पहाड़ी मिट्टी (Mountain Soil), रेगिस्तानी मिट्टी (Desert Soil), लेटराइट मिट्टी (Laterite Soil) हैं।

भारत में पाई जाने वाली प्रमुख मृदाएँ:

1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)

इस मिट्टी का निर्माण नदी द्वारा ढो कर लाए गए जलोढ़ीय पदार्थों के जरिए हुआ है। यह मिट्टी भारत की सबसे महत्वपूर्ण मिट्टी है। इसका विस्तार मुख्य रूप से हिमालय की तीन प्रमुख नदी तंत्रों गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी बेसिनों में देखा जाता है। इसके अंतर्गत पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, असम के मैदानी क्षेत्र और पूर्वी तटीय मैदानी क्षेत्र आते हैं।

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2. लाल मिट्टी (Red And Yellow Soil)

यह मिट्टी ग्रेनाइट से निर्मित है। इस मिट्टी में लाल रंग रवेदार आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में लौह धातु की वजह है। इसका पीला रंग इसमें जलयोजन की वजह से होता है। प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों में बहुत बड़े हिस्से पर लाल मिट्टी पाई जाती है, जिसमें दक्षिण पूर्वी महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, छोटा नागपुर का पठार, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, उत्तर-पूर्वी राज्यों के पठार शम्मिलित हैं।

3. काली मिट्टी (Black Or Regur Soil)

यह मिट्टी ज्वालामुखी के लावा से निर्मित हुई है। इस वजह से इस मिट्टी का रंग काला है। इसे स्थानीय भाषा में रेगर या रेगुर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है। इस मिट्टी के निर्माण में जनक शैल और जलवायु ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

4. पहाड़ी मिट्टी (Mountain Soil)

पहाड़ी मिट्टी हिमालय की घाटियों की ढ़लानों पर 2700 मी• से 3000 मी• की ऊंचाई के मध्य पाई जाती है। इन मिट्टी के निर्माण में पर्वतीय पर्यावरण के मुताबिक परिवर्तन आता है। नदी घाटियों में यह मिट्टी दोमट और सिल्टदार होती है। परंतु, ऊपरी ढ़लानों पर इसका निर्माण मोटे कणों में होता है। नदी घाटी के निचले क्षेत्रों विशेष तौर पर नदी सोपानों और जलोढ़ पखों आदि में यह मिट्टियां उपजाऊ होती है। पर्वतीय मृदा में विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाया जाता है। इस मृदा में चावल, मक्का, फल, और चारे की फसल प्रमुखता से उगाई जाती है।

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5. रेगिस्तानी मिट्टी (Desert Soil)

मरूस्थलों में दिन के वक्त ज्यादा तापमान की वजह से चट्टानें फैलती हैं और रात्रि में अधिक ठंड की वजह से चट्टानें सिकुड़ती हैं। चट्टानों के इस फैलने और सिकुड़ने की प्रक्रिया के कारण राजस्थान में मरुस्थलीय मिट्टी का निर्माण हुआ है। इस मिट्टी का विस्तार राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों में है।

6. लेटराइट मिट्टी (Laterite Soil)

लैटराइट मिट्टी उच्च तापमान एवं अत्यधिक वर्षा वाले इलाकों में विकसित होती है। यह अत्यधिक वर्षा से अत्यधिक निक्षालन (Leaching) का परिणाम है। यह मिट्टी मुख्यतः ज्यादा वर्षा वाले राज्य महाराष्ट्र, असम, मेघालय, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के पहाड़ी क्षेत्रों में एवं मध्यप्रदेश व उड़ीसा के शुष्क क्षेत्रों पाई जाती है।